🚩 आरती श्री शिव जी की – भावार्थ और व्याख्या
परिचय
आरती केवल भजन या गीत नहीं है, बल्कि ईश्वर से आत्मिक संवाद का माध्यम है। “ॐ जय शिव ओंकारा” आरती, भगवान शिव की महिमा का गान है। इसमें शिव के विभिन्न रूप, शक्तियों और उनके द्वारा किए जाने वाले जगत के पालन-पोषण की व्याख्या मिलती है। आइए, इस आरती की प्रत्येक पंक्ति को गहराई से समझें।
1️⃣ **ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ भज शिव ओंकारा।
ब्रह्मा-विष्णु-सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।**
भावार्थ:
यह पंक्ति हमें बताती है कि शिव ही ‘ॐ’ का मूर्त रूप हैं। ‘ॐ’ को प्राणवाक्य और ब्रह्मांड की मूल ध्वनि माना गया है। ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता) और सदाशिव (संहारकर्ता) – ये सभी शक्तियाँ शिव से ही प्रकट होती हैं।
व्याख्या:
जैसे एक बीज से पूरा वृक्ष निकलता है, वैसे ही ‘ॐ’ से पूरा ब्रह्मांड उद्भव हुआ।
शिव केवल संहार नहीं करते, बल्कि सृजन और पालन की शक्ति भी उन्हीं में निहित है।
उदाहरण:
सूर्य से ही प्रकाश, ऊर्जा और जीवन सब कुछ मिलता है। वैसे ही शिव से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियाँ निकलती हैं।
2️⃣ **एकानन चतुरानन पंचानन राजै,
हंसानन गरूड़ासन वृषवाहन साजै।।**
भावार्थ:
शिव के विभिन्न रूप बताए गए हैं। एकमुखी, चतुर्मुखी (ब्रह्मा), पंचमुखी (शिव का स्वरूप) आदि। उनके वाहन भी अलग-अलग रूपों में दिखाई देते हैं – हंस (ज्ञान), गरुड़ (साहस), वृषभ (धैर्य और धर्म)।
व्याख्या:
यह पंक्ति बताती है कि शिव अनंत रूपों में विद्यमान हैं। उनके प्रत्येक रूप से हमें कोई न कोई जीवन-दर्शन मिलता है।
उदाहरण:
हंस – विवेक का प्रतीक।
वृषभ – धैर्य और संयम का प्रतीक।
गरुड़ – संकट से ऊपर उठने की क्षमता।
3️⃣ **दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहै,
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे।।**
भावार्थ:
शिव कभी दो भुजाओं में, कभी चार भुजाओं में और कभी दस भुजाओं में प्रकट होते हैं। उनके इन रूपों से तीनों लोकों के जीव मोहित हो जाते हैं।
व्याख्या:
यह दर्शाता है कि शिव अपने भक्त की स्थिति और आवश्यकता अनुसार रूप धारण करते हैं। वे अनंत रूपों में प्रकट हो सकते हैं।
उदाहरण:
साधारण गृहस्थ के लिए वे भोले बाबा हैं।
महायोद्धा के लिए वे कालभैरव हैं।
योगी के लिए वे आदियोगी हैं।
4️⃣ **अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी,
चंदन मृगमद सोहै भाले शुभकारी।।**
भावार्थ:
शिव के गले में रुद्राक्ष की माला, वनमाला और मुंडमाला होती है। भाले पर चंदन और कस्तूरी का तिलक उन्हें शुभकारी बनाता है।
व्याख्या:
यह पंक्ति शिव के विविध विरोधाभासी रूपों को दिखाती है। एक ओर वे मुंडमाला धारण करते हैं (संहार का प्रतीक), वहीं दूसरी ओर चंदन और कस्तूरी से सौम्यता का संदेश देते हैं।
उदाहरण:
जीवन भी ऐसा ही है – सुख और दुःख, रचना और विनाश – दोनों का संतुलन ही जीवन का सत्य है।
5️⃣ **श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे,
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे।।**
भावार्थ:
कभी शिव श्वेत वस्त्रों में, कभी पीत वस्त्रों में, और कभी बाघम्बर (बाघ की खाल) धारण करते हैं। उनके संग सनकादिक ऋषि, ब्रह्मा तथा भूतगण भी रहते हैं।
व्याख्या:
यह दिखाता है कि शिव किसी विशेष समाज या वर्ग तक सीमित नहीं हैं। वे ऋषियों के भी हैं और प्रेत-भूतों के भी।
उदाहरण:
शिव यह शिक्षा देते हैं कि समाज में सभी वर्गों, सभी जातियों और सभी प्राणियों का स्थान है। हमें भेदभाव नहीं करना चाहिए।
6️⃣ **करके मध्ये कमण्डल चक्र शूलधारी,
सुखकर्ता दुःखहर्ता जग पालनकर्ता।।**
भावार्थ:
शिव के हाथों में कमंडल, चक्र और त्रिशूल है। वे दुखों को हरने वाले और सुख प्रदान करने वाले हैं। साथ ही वे संपूर्ण जगत के पालनकर्ता हैं।
व्याख्या:
कमंडल – संयम और साधना का प्रतीक।
त्रिशूल – तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) पर नियंत्रण।
चक्र – समय के चक्र का बोध।
उदाहरण:
जब इंसान जीवन में संकटों से गुजरता है, तब शिव का त्रिशूल उन नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है।
7️⃣ **ब्रह्मा-विष्णु-सदाशिव जानत अविवेका,
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।।**
भावार्थ:
जो लोग अविवेकी हैं, वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव को अलग मानते हैं। जबकि ‘ॐ’ में ये तीनों शक्तियाँ एक साथ विद्यमान हैं।
व्याख्या:
यह पंक्ति अद्वैत दर्शन को स्पष्ट करती है। सृष्टि, पालन और संहार – ये अलग-अलग क्रियाएँ नहीं, बल्कि एक ही शक्ति के रूप हैं।
उदाहरण:
जैसे जल बर्फ, भाप और तरल तीन रूपों में होता है, वैसे ही एक ही शक्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में प्रकट होती है।
8️⃣ **त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे,
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवांछित फल पावे।।**
भावार्थ:
जो मनुष्य शिव की आरती गाता है, उसे मनोवांछित फल मिलता है।
व्याख्या:
शिव की आरती केवल शब्दों का उच्चारण नहीं है, बल्कि आत्मा का समर्पण है। इसमें श्रद्धा और भक्ति से गाया गया हर शब्द फलदायी होता है।
उदाहरण:
जैसे दीपक अंधकार को दूर करता है, वैसे ही आरती मन के अज्ञान को मिटा देती है।
🕉️ जीवन के लिए संदेश
- आरती हमें बताती है कि शिव केवल विनाशक नहीं, बल्कि संतुलनकारी शक्ति हैं।
- जीवन के प्रत्येक विरोधाभास – सुख-दुःख, निर्माण-विनाश – में शिव का संतुलन ही आधार है।
- आरती गाने से मनोबल, धैर्य और आंतरिक शांति प्राप्त होती है।

0 टिप्पणियाँ