**“शिव तांडव स्तोत्र”** (Shiv Tandav Stotram) — मूल संस्कृत श्लोकों के साथ **हिंदी अर्थ / अनुवाद** सहित:
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## 🕉️ शिव तांडव स्तोत्र (Shiv Tandav Stotram)
**रचनाकार:** रावण (लंकेश)
**अर्थ:** भगवान शिव के तांडव रूप का अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र, जो भक्ति, शक्ति, और आत्मा की परम चेतना को जाग्रत करता है।
भगवान शिव का तांडव नृत्य करते हुए चित्र, जिनकी जटाओं से गंगा प्रवाहित हो रही है, गले में सर्पमाला और डमरू की ध्वनि से ब्रह्मांड गूंज रहा है। उनके पीछे ज्योतिर्मय प्रकाश फैल रहा है जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है।
भगवान शिव का दिव्य तांडव — सृष्टि, पालन और संहार का अनंत प्रतीक।
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### 1️⃣
**जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनौतुनः शिवः शिवम्॥**
**अर्थ:**
जटाओं से गिरती गंगा की धारा जिनके गले में बहती है, और जिनके कंठ में लटकती हुई सर्पों की माला सुशोभित है, वे जब डमरू की डमडम ध्वनि के साथ तांडव करते हैं — वे भगवान शिव हम सबको मंगल प्रदान करें।
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### 2️⃣
**जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं मम॥**
**अर्थ:**
जिनके मस्तक पर गंगा की लहरें घूमती-डोलती रहती हैं, और जिनके ललाट पर अग्नि की ज्वाला प्रज्वलित है, तथा जिनके सिर पर बाल चंद्र सुशोभित है — ऐसे किशोर चंद्रधारी शिव में मेरी निरंतर भक्ति बनी रहे।
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### 3️⃣
**धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसंततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥**
**अर्थ:**
जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के प्रिय हैं, जिनकी कृपा दृष्टि से बड़े से बड़े संकट भी नष्ट हो जाते हैं, और जो दिगम्बर (निर्वस्त्र) हैं — उन परमानंद रूप शिव में मेरा मन रम जाए।
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### 4️⃣
**जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥**
**अर्थ:**
जिनकी जटाओं में लिपटे सर्प के फण पर मणि की चमक है, जिनके शरीर पर कुंकुम और कस्तूरी का लेप है, और जो हाथी की खाल धारण किए हुए हैं — वे भूतों के स्वामी शिव मेरे मन को अद्भुत आनंद दें।
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### 5️⃣
**सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥**
**अर्थ:**
जिनके चरणों की धूल से इंद्र और अन्य देवता भी पूजन करते हैं, जिनकी जटाओं में सर्पों की माला लिपटी हुई है, और जिनके मस्तक पर चंद्र सुशोभित है — वे भगवान शिव हमें स्थायी संपत्ति और सौभाग्य प्रदान करें।
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### 6️⃣
**ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः॥**
**अर्थ:**
जिनके ललाट की अग्नि से कामदेव भस्म हो गया, जिनके शीश पर चंद्र की रश्मियाँ शोभित हैं — वे महाकपालधारी शिव हमारी रक्षा करें।
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### 7️⃣
**करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥**
**अर्थ:**
जिन्होंने अपनी तीसरी आंख की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, जो पार्वती के स्तनस्थल को चित्रवत सुशोभित करने वाले हैं — उन त्रिलोचन (तीन नेत्र वाले) शिव में मेरी नित्य भक्ति रहे।
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### 8️⃣
**नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥**
**अर्थ:**
मैं उस शिव की आराधना करता हूँ, जिन्होंने कामदेव, त्रिपुरासुर, संसार, यज्ञ, गजासुर, अंधकासुर, और मृत्यु — सबका विनाश किया।
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### 9️⃣
**अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥**
**अर्थ:**
मैं उस शिव की पूजा करता हूँ, जो समस्त कलाओं के अधिपति हैं, मधुरता के स्रोत हैं, और जिन्होंने अनेक असुरों और अंततः मृत्यु का भी अंत कर दिया।
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**जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुंगमङ्गल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥**
**अर्थ:**
जो शिव मृदंग की गूंज और सर्पों की फुफकार के साथ प्रचंड तांडव करते हैं, उनके मुख से अग्नि की ज्वाला निकलती है — ऐसे भगवान शिव सदा विजयी हों।
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🔚 समापन श्लोक
**जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं मम॥**
**अर्थ:**
चंद्रशेखर शिव के प्रति मेरी श्रद्धा, प्रेम और भक्ति हर क्षण बढ़ती रहे।
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## 🔱 लाभ
👉 शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से
* भय, नकारात्मकता और अहंकार नष्ट होता है।
* आत्मबल, आत्मविश्वास और भक्ति बढ़ती है।
* जीवन में सफलता और मानसिक शांति मिलती है।
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