भोलेनाथ के अनुसार ईश्वर की भाषा क्या है?
प्रस्तावना
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मनुष्य ने ईश्वर को समझने और उनसे संवाद स्थापित करने का प्रयास किया है। अलग-अलग धर्मों, संस्कृतियों और दर्शन ने ईश्वर की भाषा को अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया। कोई उसे संस्कृत के मंत्रों में खोजता है, कोई भजन-कीर्तन में, तो कोई मौन ध्यान में। परंतु यदि हम भोलेनाथ (भगवान शिव) के दृष्टिकोण से इस प्रश्न को देखें कि “ईश्वर की वास्तविक भाषा क्या है?” तो इसका उत्तर अत्यंत गहरा और दार्शनिक हो जाता है।
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| भोलेनाथ के अनुसार ईश्वर की असली भाषा मौन और प्रेम है। ध्यान में लीन भोलेनाथ, जो बताते हैं कि ईश्वर की भाषा शब्दों में नहीं, बल्कि मौन, प्रेम, करुणा और सत्य में निहित है। |
भगवान शिव केवल देवता ही नहीं, बल्कि संपूर्ण अस्तित्व के आधार माने जाते हैं। वे योगेश्वर हैं, तपस्वी हैं, और साथ ही करुणा व प्रेम के महासागर भी। उनके अनुसार ईश्वर को किसी विशेष शब्द, लिपि या बोली की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर की भाषा वह है, जिसे हृदय समझता है – मौन, प्रेम, करुणा और सत्य।
ईश्वर की भाषा शब्दों से परे है
- मनुष्य की भाषा शब्दों पर आधारित होती है। हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, तमिल, अरबी जैसी असंख्य भाषाएँ मनुष्य ने बनाई हैं ताकि आपसी संवाद हो सके। लेकिन ईश्वर के लिए इन भाषाओं का कोई महत्व नहीं।
- भगवान शिव कहते हैं कि ईश्वर मौन है और मौन ही उसकी सबसे बड़ी भाषा है। जब साधक ध्यान में बैठता है, शब्द मौन हो जाते हैं और भीतर का शोर थम जाता है, तभी वह ईश्वर की असली भाषा को सुन पाता है।
- यह भाषा कान से नहीं, बल्कि आत्मा से सुनी जाती है।
प्रेम – ईश्वर की सार्वभौमिक भाषा
- शिवपुराण और विभिन्न शिव-तत्वज्ञान में बार-बार प्रेम को ईश्वर की भाषा बताया गया है।
- कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म, जाति, देश या भाषा का हो, प्रेम को समझ सकता है।
- जब भक्त सच्चे भाव से भोलेनाथ के चरणों में भक्ति समर्पित करता है, तो वह किसी विशेष भाषा में मंत्र न भी बोले, तो भी भगवान उसका भाव समझ लेते हैं।
- यही कारण है कि भोलेनाथ को भोलानाथ कहा जाता है, क्योंकि वे केवल भक्त की सच्ची भावना को ही स्वीकार करते हैं।
मौन और ध्यान – शिव की पसंदीदा भाषा
- शिव योगियों के देवता हैं। वे स्वयं कैलाश पर गहन ध्यान में लीन रहते हैं।
- उनके अनुसार ईश्वर की भाषा ध्यान की मौन स्थिति है।
- जब मनुष्य का मन विचारों से खाली हो जाता है, तो वह ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करता है।
- इसी कारण शिवयोग में जप और ध्यान को सर्वोच्च महत्व दिया गया है।
करुणा – ईश्वर का हृदयस्पर्शी संवाद
- शिव करुणा और दया के प्रतीक हैं।
- उनके अनुसार, जब मनुष्य किसी जीव पर करुणा करता है, तो वह सीधे ईश्वर की भाषा बोल रहा होता है।
- करुणा ऐसी शक्ति है जो बिना शब्दों के भी गहराई से समझी जा सकती है।
- यही कारण है कि शिव ने समुद्र मंथन के समय विषपान किया, क्योंकि उनकी करुणा संपूर्ण जगत पर थी।
सत्य – ईश्वर की शाश्वत भाषा
- शिव हमेशा सत्य के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं।
- वे मानते हैं कि सत्य ही ईश्वर की भाषा है।
- जब इंसान सत्य को जीता है, तो वह अपने आप ईश्वर से संवाद करता है।
- झूठ, छल, प्रपंच ईश्वर से दूर कर देते हैं, जबकि सत्य निकट लाता है।
भाषाओं की सीमाएँ और ईश्वर की असीमता
- मानव-निर्मित भाषाएँ सीमित हैं, उनमें अर्थ और व्याख्या बदल सकती है।
- संस्कृत का एक शब्द जब दूसरी भाषा में अनुवादित होता है, तो उसका असली भाव खो सकता है।
- परंतु ईश्वर की भाषा ऐसी है जो किसी अनुवाद की मोहताज नहीं।
- जैसे – आँसू का कोई अनुवाद नहीं होता, मुस्कान का कोई अनुवाद नहीं होता। यह सीधे आत्मा तक पहुँच जाते हैं। यही ईश्वर की भाषा है।
शिव की दृष्टि से ईश्वर की भाषा के रूप
- प्रकृति की भाषा – पक्षियों का चहचहाना, नदियों का बहना, हवा की सरसराहट – यह सब ईश्वर का संवाद है।
- हृदय की भाषा – जब किसी के लिए आत्मीयता और अपनापन जागता है, तो वह ईश्वर का संदेश है।
- मौन की भाषा – जब साधक चुपचाप ध्यान में बैठता है, तभी ईश्वर से निकटता होती है।
- संगीत की भाषा – शिव के डमरू की ध्वनि से समस्त ब्रह्मांड की रचना हुई। यही बताता है कि संगीत भी ईश्वर की भाषा है।
शिव के भक्तों के अनुभव
- अनेक संतों और भक्तों ने अनुभव किया कि ईश्वर किसी विशेष भाषा से नहीं, बल्कि उनके अंतर के भाव से संवाद करते हैं।
- मीरा ने राजस्थानी भाषा में भक्ति की, कबीर ने साखियों में, तुलसी ने अवधी में – लेकिन सबका संदेश ईश्वर तक पहुँचा।
- शिव भक्तों का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति केवल आँसू बहाकर भी भगवान से प्रार्थना करता है, तो वे उसकी पुकार सुन लेते हैं।
आधुनिक दृष्टि से ईश्वर की भाषा
- आज के समय में इंसान ने विज्ञान और तकनीक की भाषा सीखी है। इंटरनेट, मोबाइल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संवाद सरल हो गया है। लेकिन ईश्वर की भाषा वही है जो सदियों से है – प्रेम, करुणा और मौन।
- यह भाषा समय और तकनीक से परे है।
- इसे सीखने के लिए किसी स्कूल या कॉलेज की जरूरत नहीं, केवल हृदय की सच्चाई चाहिए।
निष्कर्ष
भोलेनाथ के अनुसार, ईश्वर की भाषा कोई विशेष लिपि या बोली नहीं है, बल्कि वह मौन, प्रेम, करुणा और सत्य है। जब इंसान अपने भीतर इन गुणों को जागृत करता है, तो वह बिना शब्दों के भी ईश्वर से संवाद कर सकता है। यही कारण है कि शिव को "आदियोगी" कहा गया – जिन्होंने दुनिया को सिखाया कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बाहरी भाषा से नहीं, बल्कि आंतरिक साधना और शुद्ध भाव से है।
अतः यदि कोई यह पूछे कि “ईश्वर की भाषा क्या है?”, तो उत्तर सरल है –
आँसुओं की भाषा
मौन की भाषा
प्रेम और करुणा की भाषा
सत्य की भाषा।
यही है भोलेनाथ का उत्तर, और यही है ईश्वर से मिलने का वास्तविक मार्ग।

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