शिव जी के अनुसार सजीव नंदी जी का तिरस्कार और निर्जीव नंदी का सम्मान क्यों हो रहा है?

शिव जी के अनुसार सजीव नंदी जी का तिरस्कार और निर्जीव नंदी का सम्मान क्यों हो रहा है?

‎मानव समाज की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वह अक्सर जीवित सच्चाई को नकार कर मृत प्रतीक को पूजने लगता है। यही प्रश्न “शिव जी के अनुसार सजीव नंदी जी का तिरस्कार और निर्जीव नंदी का सम्मान क्यों हो रहा है?” गहरी आध्यात्मिक और सामाजिक सोच को जगाता है।

‎नंदी बैल, भगवान शिव का वाहन और उनके गणों में प्रमुख स्थान रखने वाला जीव है। परंतु आज स्थिति यह है कि जीवित नंदी – जो हमारी आँखों के सामने सांस ले रहा है, भूखा है, दुखी है – उसका तिरस्कार हो रहा है। वहीं, निर्जीव पत्थर या धातु के बने नंदी की प्रतिमा मंदिरों में सम्मान पा रही है। यह स्थिति न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी विचारणीय है।

सड़क पर उपेक्षित संजीव नंदी बैल
आज सजीव नंदी सड़कों पर उपेक्षित और भूखा-प्यासा भटक रहा है।
शिव जी के साथ नंदी का पौराणिक चित्रण, जो भक्ति और निष्ठा का प्रतीक है।

नंदी का महत्व: शिव पुराण और परंपरा में

‎शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में नंदी का वर्णन केवल वाहन के रूप में नहीं, बल्कि भक्ति, निष्ठा और आज्ञाकारिता के प्रतीक के रूप में किया गया है। नंदी को शिव का द्वारपाल माना गया है, और किसी भी भक्त को शिव दर्शन से पहले नंदी के सामने प्रार्थना करनी होती है। यही कारण है कि मंदिरों में नंदी की मूर्ति शिवलिंग की ओर मुख किए बैठी होती है।

‎नंदी का अर्थ केवल बैल नहीं है। यह जीवन के धैर्य, बल और सहनशीलता का भी प्रतीक है। वह धरती का भार उठाने वाला, कृषक का मित्र और धर्म का आधार है।

सजीव नंदी का तिरस्कार क्यों?

‎आज की सामाजिक व्यवस्था में जीवित नंदी (बैल/गाय-बैल वर्ग) की स्थिति अत्यंत दयनीय है।

  • आर्थिक दृष्टिकोण से उपेक्षा – आधुनिक कृषि में ट्रैक्टर और मशीनों के आने के बाद बैल की भूमिका कम हो गई है। किसान अब सजीव नंदी की सेवा और पालन में रुचि नहीं रखते।

  • भौतिकवादी सोच – मनुष्य अब उपयोगितावादी दृष्टिकोण से सोचने लगा है। जब तक सजीव नंदी से काम निकलता है तब तक उसका सम्मान होता है, अन्यथा उसे छोड़ दिया जाता है।

  • सड़कों पर भटकते नंदी – जगह-जगह हम देखते हैं कि बैल और गायें भूखे-प्यासे सड़कों पर घूम रही हैं। लोग उन्हें दुत्कारते हैं, उन पर गाड़ियाँ चढ़ जाती हैं, या उन्हें बेकार समझकर छोड़ दिया जाता है। यह स्थिति सजीव नंदी का तिरस्कार कहलाती है।

  • शिव सिद्धांत से विपरीत आचरण – शिव जी करुणा और अहिंसा के प्रतीक हैं। यदि हम जीवित प्राणी की उपेक्षा कर निर्जीव प्रतिमा को पूजते हैं, तो यह शिव सिद्धांतों के विपरीत आचरण है।

निर्जीव नंदी का सम्मान क्यों?

‎इस प्रश्न का उत्तर हमारी धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक प्रवृत्तियों में छिपा है।

  • धार्मिक प्रतीकवाद – मंदिरों में स्थापित नंदी को लोग श्रद्धा से पूजते हैं क्योंकि वह सीधा शिव जी से जुड़ा प्रतीक है। भक्त मानते हैं कि नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहने से वह सीधे भगवान शिव तक पहुँचती है।

  • आस्था बनाम वास्तविकता – मूर्तियाँ पूजनीय इसलिए हैं क्योंकि वे ईश्वर का प्रतिनिधित्व करती हैं। परंतु धीरे-धीरे समाज ने प्रतीक को वास्तविकता से अधिक महत्व देना शुरू कर दिया।

  • संस्कार और परंपरा – पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा ने निर्जीव नंदी की पूजा को बढ़ावा दिया, पर जीवित नंदी की सेवा को गौण कर दिया।

  • ‎सुविधा की प्रवृत्ति – निर्जीव नंदी से कोई ज़िम्मेदारी नहीं जुड़ी। न भोजन देना है, न देखभाल करनी है। बस अगरबत्ती और फूल चढ़ाकर श्रद्धा प्रकट हो जाती है। यही कारण है कि लोग निर्जीव नंदी को सम्मान देते हैं और सजीव नंदी की उपेक्षा करते हैं।

शिव जी का दृष्टिकोण

‎यदि हम शिव जी की करुणा, न्याय और संतुलन की भावना को देखें, तो स्पष्ट है कि वे कभी भी जीवित प्राणी की उपेक्षा का समर्थन नहीं करेंगे।

  • शिव और प्राणी करुणा – शिव जी को पशुपति कहा जाता है, अर्थात सभी जीवों के स्वामी। पशुपति का अर्थ है कि वे हर जीव, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव, दोनों का सम्मान करते हैं।

  • शिव का संदेश – शिव कहते हैं कि पूजा केवल प्रतीक की नहीं, सिद्धांत की होनी चाहिए। यदि जीवित नंदी को तिरस्कृत कर दिया जाए और निर्जीव नंदी को पूज लिया जाए, तो यह एक अधूरी भक्ति है।

  • धर्म का मूल – धर्म का वास्तविक स्वरूप जीवों पर दया करना है। निर्जीव मूर्ति की पूजा के साथ यदि जीवित प्राणी का सम्मान न हो, तो वह भक्ति अधूरी है।

‎समाज के लिए सीख

  • भक्ति और सेवा का संतुलन – यदि हम सच में शिव भक्त हैं तो हमें नंदी की मूर्ति की पूजा के साथ-साथ जीवित बैलों और गायों की सेवा भी करनी होगी।

  • गौवंश की रक्षा – समाज को ऐसे उपाय करने चाहिए कि संजीव नंदी सड़कों पर भूखे-प्यासे न भटके। उनके लिए आश्रय, चारा और चिकित्सा की व्यवस्था हो।

  • ‎प्रतीकवाद से परे – मूर्ति पूजन आस्था का हिस्सा है, पर असली धर्म जीवित प्राणी की रक्षा और सेवा है।

  • युवाओं की ज़िम्मेदारी – नई पीढ़ी को यह समझना होगा कि ईश्वर की सच्ची पूजा प्रकृति और प्राणी की सेवा में है।

निष्कर्ष

‎“शिव जी के अनुसार सजीव नंदी जी का तिरस्कार और निर्जीव नंदी का सम्मान क्यों हो रहा है?” इस प्रश्न का उत्तर हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं हम प्रतीक की पूजा करके वास्तविकता से तो नहीं भाग रहे।

‎शिव जी का सच्चा संदेश यही है कि निर्जीव प्रतिमा और सजीव प्राणी दोनों का सम्मान हो। परंतु प्राथमिकता उस जीवित प्राणी की होनी चाहिए जो ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है। यदि हम जीवित नंदी का तिरस्कार और निर्जीव नंदी का सम्मान करते रहेंगे, तो यह हमारी आध्यात्मिक भूल होगी।

शिव भक्ति का सार यही है – जीव पर दया, प्रकृति का संरक्षण और आस्था का सच्चा पालन।

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